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छत्तीसगढ़ी व्यंजन : खमरछठ का भोजन बनाने की विधि

खमरछठ का त्यौहार छत्तीसगढ़ में रक्षाबंधन के छह दिन बाद मनाया जाता है।  इस दिन माताये अपने संतान की दीर्घायु के लिए व्रत रखती है। और खमरछठ माता की पूजा करती है। इस दिन माताएं सुबह महुआ पेड़ की डाली का दातून कर, स्नान कर व्रत धारण करती हैं। भैस के दुध की चाय पीती हैं तथा दोपहर के बाद घर के आंगन में, मंदिर-देवालय या गांव के चौपाल आदि मे दो गड्ढे (कृत्रिम तालाब) खोदे जाते हैं, जिसे सगरी कहा जाता है उसमें जल भरते हैं। सगरी का जल, जीवन का प्रतीक है। तालाब के पार में बेर, पलाश, गूलर आदि पेड़ों की टहनियों तथा काशी के फूल को लगाकर सजाते हैं।  उसमें राधा-कृष्ण, गणेश, और शंकर-पार्वती की छोटी-छोटी मूर्तियां रखकर सगरी की पूजा की जाती है। सामने एक चौकी या पाटे पर गौरी-गणेश, कलश रखकर हलषष्ठी देवी की मूर्ति (भैस के घी में सिन्दुर से मूर्ति बनाकर) उनकी पूजा करते हैं बच्चों के खेल उपयोगी वस्तुएं सगरी में चढ़ाई जाती है। तथा हलषष्ठी माता के छह कहानी को कथा के रूप में श्रवण करती हैं।

बनाने के लिए सामग्री

पसहर चावल - आवश्यकतानुसार
हरी भाजियाँ - 6 तरह की (मुनगा, कद्दु ,सेमी, तोरई, करेला,मिर्च)
 हरी मिर्च
घी - आवश्यकतानुसार (भैस का)

बनाने की विधि 

चावल को उबाल कर कुकर में पका लें।
एक कढ़ाई में घी डालकर हरी मिर्च का छौक लगाए।

अब सभी भाजियाँ धोकर पकाये।
पूजा करने के बाद माताएं ये भोजन सूर्यास्त के पहले ग्रहण करती है। और छह तरह के पशु पक्षियों को भी भोजन खिलाती है।  

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