बारसूर शहर छत्तीसगढ़ के प्राचीन शहरों में से एक है। बारसूर छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में स्थित है। यह इंद्रावती नदी की तरफ गीदाम से 16 किलोमीटर दूर (गीदाम जगदलपुर से 80 किलोमीटर) भोपालपट्टणम के रास्ते पर स्थित है। इसे 850 ईस्वी में गंगवंशी शासको ने बसाया था। राजा बाणासुर का वर्णन पुराणों में मिलता है, उनके नाम पर ही इस नगर का नाम बारसूर पड़ा। बारसूर मंदिरों और तालाबों का शहर है। यहाँ सदियों पुराने मंदिर नदियां और झरने है। कभी यहाँ 147 मंदिर और इतने ही तालाब हुआ करते थे लेकिन आज रखरखाव के अभाव में कई मंदिर टूट फूट चुके हैं और कई तालाब सूख चुके हैं।
बारसुर के बस अड्डे पे उतरते ही मंदिरों के दर्शन हो जाते हैं। यहाँ पांच प्रसिद्ध मंदिर हैं – मामा-भांजा मंदिर, चंद्रादित्य मंदिर, गणेश मंदिर, बत्तीसा मंदिर और जंगलो के बीच में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर।
मामा- भांजा मंदिर
‘मामा-भांजा मंदिर’ छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। यह मंदिर बस्तर में मंदिरो के शहर बारसूर में स्थित है। यह मंदिर ‘भारतीय पुरातत्त्व विभाग’ की देखरेख में है। भगवन शिव को समर्पित इस मंदिर को ‘मामा – भांजा’ मंदिर के नाम से जानते है। कहते हैं, मामा और भांजा दो शिल्पकार थे जिन्हे ये मंदिर ‘सिर्फ एक दिन’ में पूरा करने का काम मिला था। और उन दोनों ने ये मंदिर सिर्फ एक दिन में बना दिया।
गणेश मंदिर
यहां बालू पत्थरों से निर्मित गणेश की दो विशालकाय प्रतिमाएं हैं, बड़ी मूर्ति लगभग साढ़े सात फीट की है और छोटी की ऊंचाई साढ़े पांच फीट है। एक गणेश की बड़ी मूर्ति है और एक छोटी, दोनों मूर्तियाँ ‘मोनोलिथिक’ हैं, यानि के एक बड़ी चट्टान से कांट छांट के बनायीं गयी, बिना किसी जोड़ – तोड़ के।
जहाँ एक गणेश जी लड्डू छुपा के सम्भाल के रखे हैं, तो दूसरे में गणेश जी लड्डू का भोग लगा चुके हैं और ये कलाकार की कलाकारी ही है, की उसने एक ही पत्थर में दो तरीके के भाव दर्शा दिए हैं।
एक ही मंदिर में गणेश की दो मूर्तियों का होना विलक्षण है। माना जाता है कि यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी गणेश प्रतिमा है। कहा जाता है कि इस मंदिर को यहां के राजा बाणासुर ने अपनी बेटी के लिए बनवाया था।
बत्तीसा मंदिर
बत्तीसा मतलब बत्तीस – 32 इस मंदिर में 32 स्तम्भ हैं | 4x8 पंक्तियों में एकदम सावधानी से उकेरे गए बड़े बड़े खालिस पत्थर के स्तम्भ | गर्भ गृह के बाहर एकदम सजा – धजा हुआ नंदी बैल, तो गर्भ गृह के अंदर एक अत्यंत सुन्दर , अनदेखा सा शिवलिंग!
शिवलिंग पत्थर का बना हुआ था, और वो एक बड़े से मैकेनिकल सिस्टम पर टिका हुआ था| जैसे पन चक्की घूमती है, पानी के गिरने से , वैसे ही ये शिवलिंग भी घूमता था | और ये सारा पत्थर का बना हुआ था| यानि के कई सौ सालों से इसे घुमाया जा रहा था, और ये घूम रहा था |
चन्द्रादित्य मंदिर
चन्द्रादित्य मंदिर 10-11 वीं शताब्दियों के बीच बनाया गया था यह एक विशाल तालाब के तट पर है। बारसुर में एक शिलालेख मिली है जिसमे शक संवत 983 तेलगु लिपि में लिखी हुई है, जो महामंडलेश्वर चंद्रादित्य महाराज के बारे में है। जो कि नागवंशी शासक 'धारवर्ष' का सामंत था। वह अम्मा गांव और चोड तेलुगु परिवार का प्रमुख था। उन्होंने एक तालाब खुदवाया और उसके बीच में शिव जी का मंदिर स्थापित करवाया।
बारसूर कैसे पहुंचे
सड़क मार्ग से : गीदाम से 16 किलोमीटर दूर (गीदाम जगदलपुर से 80 किलोमीटर) भोपालपट्टणम के रास्ते पर स्थित है। रायपुर से लगभग 400 कि मी है। यहाँ जाने के लिए बस और टैक्सी उपलब्ध है।
ट्रेन से : निकटतम रेलवे स्टेशन जगदलपुर रेलवे स्टेशन है। यहाँ से बस और टैक्सी उपलब्ध है।
फ्लाइट से : जगदलपुर हवाई अड्डे से कार द्वारा 96 किमी।
बारसुर के बस अड्डे पे उतरते ही मंदिरों के दर्शन हो जाते हैं। यहाँ पांच प्रसिद्ध मंदिर हैं – मामा-भांजा मंदिर, चंद्रादित्य मंदिर, गणेश मंदिर, बत्तीसा मंदिर और जंगलो के बीच में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर।
मामा- भांजा मंदिर
‘मामा-भांजा मंदिर’ छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। यह मंदिर बस्तर में मंदिरो के शहर बारसूर में स्थित है। यह मंदिर ‘भारतीय पुरातत्त्व विभाग’ की देखरेख में है। भगवन शिव को समर्पित इस मंदिर को ‘मामा – भांजा’ मंदिर के नाम से जानते है। कहते हैं, मामा और भांजा दो शिल्पकार थे जिन्हे ये मंदिर ‘सिर्फ एक दिन’ में पूरा करने का काम मिला था। और उन दोनों ने ये मंदिर सिर्फ एक दिन में बना दिया।
गणेश मंदिर
यहां बालू पत्थरों से निर्मित गणेश की दो विशालकाय प्रतिमाएं हैं, बड़ी मूर्ति लगभग साढ़े सात फीट की है और छोटी की ऊंचाई साढ़े पांच फीट है। एक गणेश की बड़ी मूर्ति है और एक छोटी, दोनों मूर्तियाँ ‘मोनोलिथिक’ हैं, यानि के एक बड़ी चट्टान से कांट छांट के बनायीं गयी, बिना किसी जोड़ – तोड़ के।
जहाँ एक गणेश जी लड्डू छुपा के सम्भाल के रखे हैं, तो दूसरे में गणेश जी लड्डू का भोग लगा चुके हैं और ये कलाकार की कलाकारी ही है, की उसने एक ही पत्थर में दो तरीके के भाव दर्शा दिए हैं।
एक ही मंदिर में गणेश की दो मूर्तियों का होना विलक्षण है। माना जाता है कि यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी गणेश प्रतिमा है। कहा जाता है कि इस मंदिर को यहां के राजा बाणासुर ने अपनी बेटी के लिए बनवाया था।
बत्तीसा मतलब बत्तीस – 32 इस मंदिर में 32 स्तम्भ हैं | 4x8 पंक्तियों में एकदम सावधानी से उकेरे गए बड़े बड़े खालिस पत्थर के स्तम्भ | गर्भ गृह के बाहर एकदम सजा – धजा हुआ नंदी बैल, तो गर्भ गृह के अंदर एक अत्यंत सुन्दर , अनदेखा सा शिवलिंग!
शिवलिंग पत्थर का बना हुआ था, और वो एक बड़े से मैकेनिकल सिस्टम पर टिका हुआ था| जैसे पन चक्की घूमती है, पानी के गिरने से , वैसे ही ये शिवलिंग भी घूमता था | और ये सारा पत्थर का बना हुआ था| यानि के कई सौ सालों से इसे घुमाया जा रहा था, और ये घूम रहा था |
चन्द्रादित्य मंदिर
चन्द्रादित्य मंदिर 10-11 वीं शताब्दियों के बीच बनाया गया था यह एक विशाल तालाब के तट पर है। बारसुर में एक शिलालेख मिली है जिसमे शक संवत 983 तेलगु लिपि में लिखी हुई है, जो महामंडलेश्वर चंद्रादित्य महाराज के बारे में है। जो कि नागवंशी शासक 'धारवर्ष' का सामंत था। वह अम्मा गांव और चोड तेलुगु परिवार का प्रमुख था। उन्होंने एक तालाब खुदवाया और उसके बीच में शिव जी का मंदिर स्थापित करवाया।
बारसूर कैसे पहुंचे
सड़क मार्ग से : गीदाम से 16 किलोमीटर दूर (गीदाम जगदलपुर से 80 किलोमीटर) भोपालपट्टणम के रास्ते पर स्थित है। रायपुर से लगभग 400 कि मी है। यहाँ जाने के लिए बस और टैक्सी उपलब्ध है।
ट्रेन से : निकटतम रेलवे स्टेशन जगदलपुर रेलवे स्टेशन है। यहाँ से बस और टैक्सी उपलब्ध है।
फ्लाइट से : जगदलपुर हवाई अड्डे से कार द्वारा 96 किमी।
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