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छत्तीसगढ़ी लोक गीत: भरथरी लोकगाथा

भरथरी छत्तीसगढ़ की एक लोक गाथा है। भरथरी की कथा बिहार में, उत्तरप्रदेश में, बंगाल में प्रचलित है। छत्तीसगढ़ में भरथरी की कथा कैसे आई - इसके सम्बन्ध में विद्वानों का अलग अलग मत है। नन्दकिशोर तिवारी जी का कहना है कि बंगाल के जोगी जब उज्जैन जाते थे, उस यात्रा के वक्त छत्तीसगढ़ में भी भरथरी की कथा प्रचलित हो गई थी - भरथरी और गोपीचन्द दोनों नाथ-पंथी थे।

सांरण या एकतारा के साथ भरथरी गाते योगीयों को देखा जाता है। भरथरी की सतक एवं उनकी कथा ने लोक में पहुंच कर एक नई ऊर्जा और जीवन जीवंता प्राप्त की है। लोक जीवन के विकट यथार्थ एवं सहज मान्यता ने जिन भरतरी को जन्म दिया और वह अनेक अर्थो में परम्परा लोक शक्ति की अधीन प्रयोग शीलता और विलक्षण क्षमता का परिमाण है। छत्तीसगढ़ में भरथरी की सांगितिक का त्यात्मक प्रतिष्टा है। श्रीमती सुरुज बाई खाण्डे भरथरी गायन के लिए प्रसिद्ध है।

आंचलिक परम्परा में आध्यात्मिक लोकनायक के रूप में प्रतिष्ठित राजा भर्तहरि के जीवन वृत्त, नीति और उपदेशों को लोक शैली में प्रस्तुति है - भरथरी। छत्तीसगढ़ में भरथरी गायन की पुरानी परंपरा को सुरुजबाई खांडे ने रोचक लोक शैली में प्रस्तुत कर विशेष पहचान बनाई है। भरथरी गायन में हारमोनियम, बांसुरी, तबला, मंजीरा का संगत होता है।
भरथरी कौन है?

भारतीय ऐतिहासिक लोककथाओं में राजा भरथरी बहुत प्रसिद्ध हैं। भरथरी और संस्कृत के महान कवि भर्तृहरि को एक ही व्यक्ति माना जाता है। राजा भरथरी का मूल नाम भर्तृहरि हैं। राजा भरथरी परमार वंश से आते है और ये महान सम्राट विक्रमादित्य के बड़े भाई हैं।

भरथरी कथा में दो पात्र है - भरथरी और गोपीचन्द, जिनसे ये कथा शुरु होती है। राजा भरथरी और भान्जा गोपीचन्द।

भरथरी के बारे में बहुत किंवदन्तियाँ हैं।

भरथरी एक ऐसा चरित्र है जिसके बारे में कहा जाता है कि वे योगी बने थे। भरथरी उज्जैन का राजा था। अब भरथरी क्यों योगी बनकर राज्य छोड़कर चले गये थे, इसके बारे में अलग अलग कहानियाँ प्रचलित है जिसमें आखिर में गोरखनाथ के कृपा से सब ठीक हो जाता है और भरथरी गोरखनाथ के शिष्य बन जाते हैं। इसलिये इनका एक लोकप्रचलित नाम बाबा भरथरी भी है।

नन्दकिशोर तिवारी जी जिन्होंने भरथरी-छत्तीसगढ़ी लोकगाथा पर गहन अध्ययन किया, और अनुवाद किया, बहुत ही रोचक है उनका अनुवाद। नीचे उनका अनुवाद दिया गया है - जिसमें भरथरी की माता भरथरी के जन्म से पहले पुत्र कामना की अग्नि से भुन रही है और फिर भरथरी का जन्म वृतान्त : (" छत्तीसगढ़ी गीत" , सम्पादक - जमुनाप्रसाद कसार )

बालक टेर ये बबूर के
पर के पथरा ल ओ
कय दिन नोनी ह का सहय
बालक टेर ये बबूर के
पर के पथरा ल ओ
कय दिन कइना ह का सहय
कइना तय्मूर ओर, जेमा नइये दीदी
मोर लाठी के मार ले खावय ओं,
बाई खाये ओ, रानी ये दे जी
जऊने समय कर बेरा मा
सुनिले भगवान
कइसे विधि कर कइना रोवत है
सतखण्डा ए ओ
सातखण्ड के ओगरी
बत्तीस खण्ड के न अंधियारी मा राम
साय गु मा
मोर कलपी-कलप रानी रोवय
बाई रोवय ओ, रानी ये दे जी

हिन्दी अनुवाद -

बबूल के पेड़ में फूल के सादृश्य
पुत्र की कल्पना है
दु:खों के पहाड़ का वजन
कब तक सहे रानी
और,
सहती रहे लाठी की मार
हे ! भगवान
इस दारुण दु:ख का भार लिए
रो रही है कन्या
सातखण्डों का जलाशय
और बत्तीस खण्डों के अंधियारे
में घिरी


कलप-कलप रो रही है रानी।
मुझसे छोटे और छोटों की गोद में
देखो तो
गूंज रही है बच्चों की किलकारी
सूनी है गोद
मुझ अभागिन की
कलप-कलप रो रही है रानी।

सुरुज बाई खांडे की आवाज में भरथरी गायन देखे


Source: भरथरी - लोकगाथा

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