हमर छत्तीसगढ़ : सीता लेखनी पहाड़ी अंबिकापुर
माना जाता है कि राम ने चौदह वर्ष का वनवास में अधिकतर समय उन्होंने छत्तीसगढ़ में बिताया। छत्तीसगढ़ में स्थित कई जगह भी इस बात के पुख्ता सबूत भी पेश करते हैं। उनमे से ही एक है 'सीतालेखनी पहाड़ी।
छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक प्राचीन एवं पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण आदिम मानवों का निवास स्थल सीता लेखनी के नाम से जाना जाता है। यह स्थल सरगुजा के जिला मुख्यालय अम्बिकापुर से लगभग 125 किलोमीटर की दूरी पर सूरजपुर जिले में वन परिक्षेत्र बभना कुदूरगढ़ के अंतर्गत है। यहाँ शंख लिपि के लेख के साथ प्राचीन शैल चित्र भी प्राप्त होते हैं।
नामकरण एवं किंवदन्ति
सीता लेखनी के विषय में ग्रामीण मान्यता और किंवदन्ति है कि वनवास काल में भगवान राम और लक्ष्मण ने सीता सहित इस वन परिक्षेत्र में इस पर्वत के समीप निवास किया था। दिनचर्या के पालन में स्थानीय वनवासी उनकी सहायता करते थे। इस पहाड़ी पर चारों तरफ़ से गेरु से बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ है। मान्यता है कि यहाँ की पहाड़ियों पर माता सीता ने अपने हाथों से लिखा है, इसलिए इसका नाम सीता लेखनी पड़ा।
पुरातात्विक महत्व
मानव मुखाकृति सीता लेखनी पहाड़ी पर लेखन शंख लिपि में है। यहाँ शैलचित्रों में मछली, शुकर, हिरण एवं अन्य ज्यामितिय आकृतियाँ भी दिखाई देती हैं। इससे ज्ञात होता है कि इस स्थान पर आदिमानवों का निवास भी रहा है। इसके कारण यह स्थल पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। संसार की प्राचीन लिपियों में से एक शंख लिपि भी है। इस लिपि में भारत के अतिरिक्त जावा और बोर्नियो में प्राप्त बहुत से शिलालेख प्राप्त हुए हैं। इस लिपि के वर्ण 'शंख' से मिलते-जुलते कलात्मक होने के कारण इस लिपि का नामकरण शंख लिपि हुआ। दुर्भाग्य है कि इस लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। अगर यह लिपि पढ़ी जा सकती तो महत्वपूर्ण प्राचीन जानकारियों से हम अवगत हो सकते हैं।
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सीता लिखने कैसे पहुंचे
सड़क मार्ग से: सीता लेखनी पहाड़ी अम्बिकापुर से लगभग 125 किलोमीटर की दूरी पर सुरजपुर जिले के बभना कुदूरगढ़ वन परिक्षेत्र में ग्राम महुली के पास स्थित है। यहा जाने के लिए अम्बिकापुर से भैयाथान एवं ओड़गी विकासखंड से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम महुली के समीप जाना होता है। यह स्थान वनाच्छादित एवं सुरम्य है। राजधानी मुख्यालय रायपुर से इस स्थान की दूरी लगभग 475 किलोमीटर होगी। इस स्थान पर अम्बिकापुर से स्वयं के साधन एवं टैक्सी द्वारा जाया जा सकता है। सुबह शाम बिहारपुर के लिए बस सुविधा उपलब्ध है।
ट्रैन से: निकटतम रेलवे स्टेशन अंबिकापुर रेलवे स्टेशन है।
वायु से: निकटतम एयरपोर्ट स्वामी विवकानंद एयरपोर्ट है।
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सीता लेखनी के विषय में ग्रामीण मान्यता और किंवदन्ति है कि वनवास काल में भगवान राम और लक्ष्मण ने सीता सहित इस वन परिक्षेत्र में इस पर्वत के समीप निवास किया था। दिनचर्या के पालन में स्थानीय वनवासी उनकी सहायता करते थे। इस पहाड़ी पर चारों तरफ़ से गेरु से बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ है। मान्यता है कि यहाँ की पहाड़ियों पर माता सीता ने अपने हाथों से लिखा है, इसलिए इसका नाम सीता लेखनी पड़ा।
पुरातात्विक महत्व
मानव मुखाकृति सीता लेखनी पहाड़ी पर लेखन शंख लिपि में है। यहाँ शैलचित्रों में मछली, शुकर, हिरण एवं अन्य ज्यामितिय आकृतियाँ भी दिखाई देती हैं। इससे ज्ञात होता है कि इस स्थान पर आदिमानवों का निवास भी रहा है। इसके कारण यह स्थल पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। संसार की प्राचीन लिपियों में से एक शंख लिपि भी है। इस लिपि में भारत के अतिरिक्त जावा और बोर्नियो में प्राप्त बहुत से शिलालेख प्राप्त हुए हैं। इस लिपि के वर्ण 'शंख' से मिलते-जुलते कलात्मक होने के कारण इस लिपि का नामकरण शंख लिपि हुआ। दुर्भाग्य है कि इस लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। अगर यह लिपि पढ़ी जा सकती तो महत्वपूर्ण प्राचीन जानकारियों से हम अवगत हो सकते हैं।
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ट्रैन से: निकटतम रेलवे स्टेशन अंबिकापुर रेलवे स्टेशन है।
वायु से: निकटतम एयरपोर्ट स्वामी विवकानंद एयरपोर्ट है।
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