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हमर छत्तीसगढ़ : बारसूर के जुड़वाँ गणपति है सबसे अलग


बारसूर के गणेश जुड़वाँ है जी हाँ, यहाँ एक गणेश की एक बड़ी मूर्ति है, और एक छोटी, और दोनों ‘मोनोलिथिक’ हैं, यानि के एक बड़ी चट्टान से कांट छांट के बनायीं गयी, बिना किसी जोड़ – तोड़ के। जहाँ एक गणेश की मूर्ति में लड्डू छुपा के – सम्भाल के रखे हैं, तो दूसरे में गणेश जी लड्डू का भोग लगा चुके हैं। ये कलाकार की कलाकारी ही है, की उसने एक ही पत्थर में दो तरीके के भाव दर्शा दिए हैं।


यहां बालू पत्थरों से निर्मित गणेश की दो विशालकाय प्रतिमाएं हैं, बड़ी मूर्ति लगभग साढ़े सात फीट की है और छोटी की ऊंचाई साढ़े पांच फीट है। एक ही मंदिर में गणेश की दो मूर्तियों का होना विलक्षण है। माना जाता है कि यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी गणेश प्रतिमा है। कहा जाता है कि इस मंदिर को यहां के राजा ने अपनी बेटी के लिए बनवाया था।

राजा बाणासुर ने बनवाया था मंदिर


राजा बाणासुर का वर्णन पुराणों में मिलता है, उनके नाम पर ही इस नगर का नाम बारसूर पड़ा। राजा की बेटी उषा और उनके मंत्री की बेटी चित्रलेखा आपस में पक्की सहेलियां थीं। दोनों गणेश जी की भक्त थीं पर आस-पास गणेश जी का कोई मंदिर नहीं था। इस वजह से दोनों मन ही मन गणेश जी की अराधना करती थी। उषा ने मंदिर न होने की बात अपने पिता से कही। फिर क्या था बाणासुर ने दोनों सहेलियों के लिए गणेश जी की मूर्तियों का निर्माण करा दिया। दोनों सहेलियां रोज उस मंदिर में गणेश जी की पूजा करने जाया करती थीं। कहा जाता है कि गणपति उषा और चित्रलेखा की साधना से प्रसन्न हुए थे और तब से यहां आने वाले अपने सभी भक्तों की हर कामना पूरी करते हैं।

गणेश मंदिर कैसे पहुंचे 

सड़क मार्ग से : गीदाम से 16 किलोमीटर दूर  (गीदाम जगदलपुर से 80 किलोमीटर) भोपालपट्टणम के रास्ते पर स्थित है। रायपुर से लगभग ४०० कि मी है। यहाँ जाने के लिए बस  और टैक्सी उपलब्ध है।

ट्रेन से : निकटतम रेलवे स्टेशन जगदलपुर रेलवे स्टेशन है।  यहाँ से बस और टैक्सी उपलब्ध है।

फ्लाइट से : जगदलपुर हवाई अड्डे से कार द्वारा 96 किमी।

वीडियो देखे 



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