छत्तीसगढ़ में गऊरा गऊरी उत्सव बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है। गऊरा है भगवान शिव और गऊरी है माता पार्वती। यह लोक उत्सव हर साल दीवाली और लक्ष्मी पूजा के एक दिन बाद यानि गोवर्धन पूजा के दिन मनाया जाता है। कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष अमावस्या के वक्त यह उत्सव मनाया जाता है। इस पूजा में सभी जाति समुदाय के लोग शामिल होते हैं।
इस अंचल में दीपावली पूजा के दिन को शुरुहुत्ति त्यौहार भी कहते हैं जिसका अर्थ है त्यौहार की शुरुआत। दीपावली के दिन शाम चार बजे लोग गांव के बाहर एक स्थान पर इकट्ठे होकर पूजा करते हैं। उसके बाद उसी स्थान से मिट्टी लेकर गांव वापस आते हैं। गांव वापस आने के बाद मिट्टी को गीला करते हैं और उस गीली मिट्टी से शिव-पार्वती की मूर्ति बनाते हैं।
दो कुंवारे लड़के या लड़की गऊरा गऊरी के पिड़हे को सर पर रखकर चलते हैं और आसपास गऊरा गऊरी गीत, नाच-गाना दोनों ही आरम्भ हो जाते हैं। नाचते गाते हुए लोग झांकी के साथ पुरे गांव की परिक्रमा करते हैं। इसके बाद गऊरा गऊरी को गांव के नदी या तालाब में विसर्जन करने के बाद खुशहाली की कामना करते हुए लोग अपने घर की ओर प्रस्थान करते है।
गऊरा लोक गीत सिर्फ महिलाए ही गाती हैं । महिलायें गाती हैं और पुरुष लोक वाद्य यन्त्र जैसे मांदर, दमऊ, सींग बाजा, ढोल, नगाड़ा, गुदुम, मोहरी, मंजीरा, झुमका, दफड़ा आदि बजाते है। इसे गंडवा बाजा कहते हैं क्योंकि इन वाद्यों को गांडा जाति के लोग ही बजाते हैं। इस उत्सव के पहले जो पूजा होती है, वह बैगा जाति के लोग करते हैं। इस पूजा को चावल चढ़ाना कहते हैं। इसमें गीत गाते हुये गऊरा गऊरी को चावल चढ़ाया जाता है।
एक पतरी रयनी भयनी।
राय रतन ओ दुरगा देवी।।
तोरे शीतल छांय।
चौकी चंदन पिढुली।।
गऊरी के होथय मान।।
जइसे गऊरी ओ मान तुम्हारे।।
कोरवन जइसे धार।
कोरवन असन डोहरी।
बरस ससलगे डार।।
महिलायें गीत गा रही है और चावल चढ़ाया जा रहा है। एक पतरी चावल, दो पतरी, ................
दू पतरी रयनी भयनी।
राय रतन ओ दुरगा देवी।।........... बरस ससलगे डार।।
तीन पतरी रयनी भयनी।
राय रतन ओ दुरगा देवी।।.............. बरस ससलगे डार।।
चार पतरी रयनी भयनी।
राय रतन ओ दुरगा देवी।।.................. बरस ससलगे डार।।
पांच पतरी रयनी भयनी।
राय रतन ओ दुरगा देवी।।................. बरस ससलगे डार।।
छय पतरी रयनी भयनी।
राय रतन ओ दुरगा देवी।।................. बरस ससलगे डार।।
सात पतरी रयनी भयनी।
राय रतन ओ दुरगा देवी।।.................. बरस ससलगे डार।।
इस गीत में महिलायें देवी दुर्गा को कह रही है कि हे माँ, आपके शीतल छांव में चौकी, चंदन पिढ़वी में गऊरा गऊरी को बिठा रहे हैं। कपूर के साथ हम आरती उतार रहे हैं। एक पतरी ................ सात पतरी चावल चढ़ा रहे हैं। और अगर कोई भूल हो गई तो हमें माफ करना।
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