Header Ads

छत्तीसगढ़ी त्यौहार : भोजली यात्रा, नौ दिनों बाद घरों से निकले कलश, विसर्जन


छत्तीसगढ़  प्रदेश का पारंपरिक त्योहार भोजली उत्सव सोमवार को मनाया गया। शहर के अलग-अलग इलाकों से निकली भोजली टिकरापारा पहुंची। यहां सभी लोग एकजुट हुए और भोजली यात्रा निकाली गई। इस यात्रा में सैकड़ों लोग शामिल हुए। शाम को बूढ़ातालाब में भोजली में रखी मिट्टी और खाद का विसर्जन किया गया। अब भोजली की बची बालियां किसान परिवारों के बीच दोस्ती की कड़ी बनेंगी।
दरअसल, भोजली प्रदेश के किसान परिवारों और आदिवासियों से जुड़ा महत्वपूर्ण पर्व है। अच्छे बारिश और अच्छी फसल की कामना लेकर घरों में भोजली की स्थापना की जाती है। यह नवरात्र की तरह मनाया जाने वाला पर्व है। इसमें भी 9 दिनों तक धान की बालियां कलश में उगाई जाती हैं। हालांकि इनकी स्थापना मंदिरों में न करके घर के अंदर की जाती है। कलश में रखे खाद-मिट्टी को भोजली उत्सव के दिन तालाब में विसर्जित किया जाता है। इसमें उगी धान की बालियों को धोकर वापस घर लाया जाता है। तालाब से वापस घर लाई गई भोजली यानी धान की बालियों को एक-दूसरे को भेंट करने की परंपरा है। जिसे दोस्त बनाना है, उसे धान की बालियां भेंट की जाती हैं। पंडितों की उपस्थिति में या घर में तुलसी के पौधे के सामने इसे एक-दूसरे को दिया जाता है। यह श्रावण शुक्ल नवमी से रक्षाबंधन के दूसरे दिन तक छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में गूंजती है। 

No comments