शहर के प्राचीन मंदिरों में पुरानी बस्ती के जगन्नाथ मंदिर की भी गिनती होती है। इस मंदिर को साहूतकार मंदिर के नाम से जाना जाता था, लेकिन बाद में भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा स्थापित करने के बाद इस मंदिर को नई पहचान मिली। इस मंदिर को 500 साल पुराना माना जा रहा है।
500 साल पुराना मंदिर राजधानी रायपुर की है पहचान , रथयात्रा पर जुटते हैं हजारों श्रद्धालु
1. रायपुर के प्राचीन मंदिर में इसकी गणना 500 वर्ष पूर्व की गई। इस मंदिर का निर्माण अग्रवाल परिवार ने कराया था। अंग्रेजों के काल में एक अग्रवाल साहूतकार ने मंदिर का विस्तार किया और सौंदर्य को बढ़ाया।
2. यह मंदिर पुरी के जगन्नाथ मंदिर से वर्णित है। मगर मंदिर परिसर में जगन्नाथ स्वामी के अलावा हनुमान, गरूड़, राम, लक्ष्मण, सीता, संतोषी माता और दो शंकर मंदिर भी है।
3. मंदिर का प्रमुख उत्सव रथयात्रा है। जो ओडिसा से लगे हुए क्षेत्रों में धूमधाम से मनाया जाता है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितिया तिथि से प्रारंभ होती है। इस दिन प्रात: 5 बजे से हवन-भजन आरती होती है। सर्वाकार पहले पूजा करते है और वे भी रथयात्रा को सम्मान के साथ प्रारंभ करते है।
4. वर्तमान में मंदिर के सर्वाकार महंत रामसुंदर दास हैं। जो महंत के रूप में ख्याति प्राप्त है। वे दूधाधारी मठ के अलावा 7-8 मंदिरों के भी प्रमुख है।
6. रथयात्रा के बाद लाखे नगर स्थित जनकपुर में एकादशी तक (10 दिन) रहते हैं। नयन उत्सव वहीं होता है। एकादशी को पूजन के बाद वापसी यात्रा शुरु होती है।
7. जिस वर्ष दो आषाढ होते हैं। उस साल मूर्ति बदलने की परपंरा है। लेकिन पुरानी बस्ती की जगन्नाथ मंदिर की मूर्ति नहीं बदली जाती। क्योंकि यहां त्रिमूल मूर्तियां जगन्नाथपुरी से लाई गई थी। पुरी से भी विशेष कलाकार आते है और रंगरोगन करते है। जगन्नाथ स्वामी का प्रसाद गजामूंग कहलाता है। भक्तों के बीच इसका वितरण किया जाता है।
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