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सोशल होना मतलब 'असामाजिक' होना

एक कमरे में बैठकर सोशल मीडिया पर बहुत सारे दोस्त बना लेने या दूसरों की पोस्ट पर

लाइक-कमेंट्स करने भर से शायद हम ख़ुद को सामाजिक मान लेंलेकि  यह आभासी
सामाजिकता हमें असल समाज से धीरे-धीरे दूर कर रही है। 

इसने हमारी व्यवहार कुशलता                                    

को तो प्रभावि  कि या ही हैसाथ ही 
हमें संवेदनहीन भी बना डाला है। समय रहतेइसके
प्रति सचेत हो जाना ज़रूरी हैताकि अपनों सेहमारा
वास्तवि  जुड़ाव बना रहे।

अपनापन नज़र  जाता है

हम भले ही दि नभर चैट करते रहेंलेकि  सीधे मि लने पर चेहरा देखते ही होने वाली ख़ुशी
और अपनेपन की अनुभूति अलग ही होती है। पार्टी का नि मंत्रण फ़ेसबुक पर डाल दि या
या जन्मदि वस की शुभकामना फ़ेसबुक या वॉट्सएप पर दे दी। इस तरह के व्यवहार में भी
रूखापन झलक जाता है। एक बार मि लकर या फ़ोन से ख़ुद कहने पर जो आत्मी यता और
भावनात्मक लगाव दि खता हैवह कि सी अन्य तरीक़े से नहीं दि  सकता।

व्यवहार कुशलता का अभाव

सोशल मीडिया पर पूरी तरह से भावनाएं व्यक्त करने की हमारी आदत नहीं रह जाती। कम
शब्दों में लि खनाभावनाओं के लि  इमोटीकॉन्स का प्रयोग करनाआंखें मि लाकर बात
 होनाशरीर के हावभाव की ज़रूरत  पड़ने से हमारी व्यवहार कुशलता में कमी 
जाती है। इसलि  जब असल दुनि या में हम लोगों के बीच जाते हैं या साक्षात्का  के लि 
कि सी के सामने बैठते हैंतो व्यक्ति को भरोसे में लेना मुश्किल हो जाता है।

संवेदनशीलता की कमी

आभासी दुनि या में रहते हुए हमारे अंदर थोड़ी संवेदनहीनता  ही जाती है। मसलन,
चैटि ंग के दौरान कोई ज़रूरी बात हो रही हो और छोटा-सा काम भी याद  जाएतो
बायकहकर हम एकाएक बात ख़त्म कर देते हैं। इसके अलावा एक साथ कई लोगों से
चैटि ंग की आदत भी लोगों से हमारे वास्तवि  जुड़ाव को कम करती है। संवेदनहीनता का
आलम यह है कि कई बार व्यक्ति परिचि  या ख़ुद के घर में कि सी की मृत्यु पर होने पर
भी सेल्फ़ी खींचकर डाल देता है। इसी तरह लोग एक-दूसरे की देखादेखी यहीं श्रद्धांजलि
भी दे देते हैंजबकि यह समय होता है क़रीब रहकर सम्बल देने का।

ध्या  दें रिश्ते  भटक जाएं

बहुत दि नों बाद कोई रिश्ते दार या परिचि  घर आकर हमसे बात कर रहा हैलेकि  हम
बार-बार फ़ोन पर वॉट्सऐपफेसबुक या ईमेल नोटिफि केशन्स देख रहे होते हैं। यूं तो यह
छोटी-सी बात लगती हैलेकि  यह स्वस्थ सम्बं  के लि हाज़ से बहुत बड़ी ग़लती है,
िज ससे सामने वाला खीझ सकता है और हो सकता है दुबारा मि लने से पहले सौ बार सोचे।

यादगार लम्हों को जीना चूक गए

कई शोध बताते हैं कि सोशल मीडिया का नशा लोगों से कई बार उनके सबसे यादगार
लम्हे सिर् फ़ इसलि  छीन लेता हैक्योंकि वे उस समय भी कि सी अन्य से चैटि ंग कर रहे
होते हैं या फि  अपने फ़ोटोग्राफ अपलोड कर रहे होते हैं। इससे वे उस पल को ठीक से

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